स्किनर के क्रियाप्रसूत अनुकूलन (operant conditioning) या नैमित्तिक अनुकूलन (instrumental learning) सिद्धान्त के अनुसार, व्यवहार के परिणाम, क्रिया के होने की संभावना को प्रभावित करते हैं। एक व्यवहार जिसके पश्चात् एक सुखदायक उद्दीपक जुड़ा हुआ हो, उसके बार-बार होने की संभावना अधिक होती है, लेकिन यदि दूसरा व्यवहार किसी दंडात्मक उद्दीपक से जुड़ा हो तो उसके होने की संभावना कम हो जाती है। उदाहरण के लिए, एक बालक के किसी व्यवहार को अगर एक मुस्कराहट द्वारा प्रतिक्रिया दी जाए तो उस बालक द्वारा वह व्यवहार पुनः करने की संभावना बढ़ जाती है। लेकिन अगर ऐसे व्यवहार के लिए गुस्से की प्रतिक्रिया दी जाए तो उस व्यवहार के दुबारा प्रदर्शित करने की संभावना कम हो जाती है।
उन्होने 2 प्रकार की क्रियाओं पर प्रकाश डाला- क्रिया प्रसूत व उद्दीपन प्रसूत। जो क्रियाएं उद्दीपन के द्वारा होती है वे उद्दीपन आधारित होती है। क्रिया प्रसूत का सम्बन्ध किसी ज्ञात उद्दीपन से न होकर उत्तेजना से होता है।
स्किनर ने अपना प्रयोग चूहों पर किया। इसके लिए लीवर वाला वाक्स (स्किनर बाक्स) बनवाया। लीवर पर चूहे का पैर पड़ते ही खट की आवाज होती थी। इस ध्वनि को सुन चूहा आगे बढ़ता और उसे प्याले में भोजन मिलता । यह भोजन चूहे के लिए प्रबलन का कार्य करता। चूहा भूखा होने पर प्रणोदित होता और लीवर को दबाता। इन प्रयोगों में जब प्राणी स्वयं कोई वांछित व्यवहार करता है, तो व्यवहार के परिणाम स्वरूप उसे पुरस्कार प्राप्त होता है। अन्य व्यवहारों के करने पर उसे सफलता प्राप्त नही होती । वह पुरस्कृत व्यवहार आसानी से सीख लेता है।
निष्कर्ष यह है, कि यदि क्रिया के बाद कोई बल प्रदान करने वाला उद्दीपन मिलता है, तो उस क्रिया की शक्ति में वृद्धि होती है। स्किनर के मत में प्रत्येक पुनर्बलन अनुक्रिया को करने के लिए प्रेरित करता है।
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