Tuesday, September 27, 2022

बाल विकास (Child Developmet)

 बाल विकास (Child Developmet) - बाल विकास का अध्ययन करने के लिए 'विकासात्मक मनोविज्ञान' की एक अलग शाखा बनायी गयी, जो बालकों के व्यवहारों का अध्ययन गर्भावस्था से होकर मृत्युपर्यत करती है। परंतु वर्तमान समय में इसे 'बाल विकास' (Child Development) में परिवर्तित कर दिया गया।

हरलॉक (Hurlock) ने इस संबंध में कहा है कि ‘‘बाल मनोविज्ञान का नाम बाल विकास इसलिए रखा गया क्योकि विकास के अंतर्गत अब बालक के विकास के समस्त पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, किसी एक पक्ष पर नहीं।''

विभिन्न विद्वानों ने बाल विकास को निम्न प्रकार से परिभाषित किया है- क्रो और क्रो (Crow & Crow, 1958) के अनुसार, “बाल मनोविज्ञान वह वैज्ञानिक अध्ययन है जो व्यक्ति के विकास का अध्ययन गर्भकाल के प्रारंभ से किशोरावस्था की प्रारंभिक अवस्था तक करता है।''

जेम्स ड्रेवर (James Drever; 1968) के अनुसार, “बाल मनोविज्ञान मनोविज्ञान की वह शाखा है जिसमें जन्म से परिपक्वावस्था तक विकसित हो रहे मानव का अध्ययन किया जाता है।

आइजनेक (Eysenck, 1972) के अनुसार, “बाल मनोविज्ञान का संबंध बालक में मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं के विकास से है। गर्भकालीन अवस्था, जन्म, शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था और परिपक्वावस्था तक के बालक की मनोवैज्ञानिक विकास प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।''

हरलॉक (Hurlock, 1978) के अनुसार, ‘‘बाल विकास मनोविज्ञान की वह शाखा है जो गर्भाधान से लेकर मृत्युपर्यंत तक मनुष्य के विकास की विभिन्न अवस्थाओं में होनेवाले परिवर्तनों का अध्ययन करता है।''

उपयुक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट होता है कि बाल विकास बाल मनोविज्ञान की ही एक शाखा है जो बालकों के विकास, व्यवहार, विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न तथ्यों का अध्ययन करता है।बाल मनोविज्ञान तथा बाल विकास में अंतर यह है कि बाल मनोविज्ञान बालक की क्षमताओं का अध्ययन करता है जबकि बाल विकास क्षमताओं के विकास की दशा का अध्ययन करता है।

बाल मनोविज्ञान दो शब्दों से मिलकर बना है। बाल + मनोविज्ञान। 'बाल' का अर्थ है बालक अर्थात वह प्राणी जो प्रौढ़ की श्रेणी में नहीं आया, हो उसे बालक की श्रेणी में रखा जाता है। मनोविज्ञान से अभिप्राय मन के विज्ञान से है। अतः बाल मनोविज्ञान से तात्पर्य विज्ञान की उस शाखा से है जो बालकों के मन (व्यवहारो) का अध्ययन गर्भावस्था से लेकर किशोरावस्था तक करता है ।

बाल विकास की प्रकृति (Nature of Child Development) -

बाल विकास की प्रकृति निम्नलिखित है-                     

1. मनोविज्ञान की एक विशिष्ट शाखा के रूप में बाल विकास (Child Development as a Special Branch of Psychology) - मनोविज्ञान में विभिन्न प्रकार के प्राणियों के व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। व्यवहार में कई प्रकार, कई पक्ष (Aspects) तथा कई आयाम (Dimensions) होते हैं।

बाल विकास मनोविज्ञान की एक महत्वपूर्ण, उपयोगी तथा समाज और राष्ट्र के लिए कल्याणकारी शाखा है। मनोविज्ञान की शाखा में केवल मानव-व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। गर्भकालीन अवस्था से लेकर युवावस्था तक के विकासशील मानव के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।

इस अवस्था में मानव व्यवहार के विकास तथा विभिन्न आयु-स्तरों पर भी विशिष्ट व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है। यहाँ विकास का अर्थ है—मानव की जैविक संरचना (Biological Structure) तथा मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं (Psychological Processes) में होने वाले क्रमिक परिवर्तन।


2. मनोविज्ञान में विशिष्ट उपागम के रूप में बाल विकास विषय (Child Development as a Special Approach in Psychology) - मानव व्यवहारों के अध्ययन के लिए बाल विकास में कई विशिष्ट उपागम या विचार-पद्धतियों का उपयोग किया जाता है। ये उपागम निम्नलिखित हैं-

(a) प्रयोगात्मक उपागम (Experimental Approach) - इस उपागम के द्वारा बाल विकास की विभिन्न समस्याओं के अध्ययन में कार्य-कारण संबंध (Cause & Effect Relationship) को जानने का प्रयास किया जाता है।

इस उपागम के द्वारा एक विशिष्ट व्यवहार किस परिस्थिति में उत्पन्न होता है या एक परिस्थिति-विशेष में व्यक्ति किस प्रकार के व्यवहार की अभिव्यक्ति करेगा. यह अध्ययन किया जा सकता है।


(b) दैहिक उपागम (Physiological Approach) - नाड़ी संस्थान (Nervous System) प्राणी के शरीर की संपूर्ण क्रियाओं को नियंत्रित करता है। ये क्रियाएँ शारीरिक भी हो सकती हैं और मनोवैज्ञानिक भी।

शारीरिक वृद्धि, विकास और स्वास्थ्य मुख्यतः हार्मोन्स और ग्रंथियों की क्रियाशीलता से संबंधित होता है। बाल विकास को दैहिकशास्त्र (Physiology) के ज्ञान के द्वारा भी समझा जा सकता है, क्योकि जैविक आत्म (Biological Self) तथा मानसिक आत्म (Psychic Self) एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से संबंधित होते हैं।

गर्भकालीन शिशु और शिशुओं के व्यवहार से संबंधित समस्याओं का समाधान मुख्य रूप से इस उपागम द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।


(c) विकासात्मक उपागम (Developmental Approach) - बाल विकास की समस्याओं के अध्ययन के लिए विकासात्मक उपागम भी अपनाया जाता है। इस उपागम को अपनाने का मुख्य कारण यह है कि जब बालक एक नयी विकास अवस्था में पहुँचता है तब उसमें कुछ नई रुचियों, कुछ नई अभिवृत्तियों, कुछ नये लक्षणों, कुछ ये शील-गुणों का एक विशिष्ट समूह (Cluster) निर्मित होता है। इस प्रकार के विशिष्ट यह कई अवस्थाओं में देखे जा सकते हैं। विकासात्मक उपागम (Approach) के द्वारा विकास की मात्रा, गति और विकास की विशिष्टताओं आदि की जानकारी अलग-अलग तथा सम्पूर्ण रूप में होती है।

(d) व्यक्तित्व संबंधी उपागम (Personality Approach) - किसी बालक का व्यवहार उस बालक के किसी-न-किसी पहलू को अभिव्यक्त करता है। जन्म से ही व्यक्तित्व का निर्माण प्रारंभ हो जाता है। भिन्न भिन्न व्यक्तित्व वाले व्यक्तियों का व्यवहार भी भिन्न-भिन्न होता है।

व्यक्तित्व के शीलगुणों (Traits) की स्थिरता व्यक्तियों के समायोजन, अभिवृत्तियों और आदतों आदि के निर्माण से संबंधित होता है।

अतः व्यक्तित्व के शील-गुणों के आधार पर व्यक्ति के समायोजन, अभिवृतियों और आदतों आदि के संबंध में भविष्यवाणी की जा सकती है।


(e) एक विशिष्ट अध्ययन प्रणाली के रूप में बाल विकास (Child Development as a Special Study Approach) - बाल विकास बाल मनोविज्ञान का ही एक विकसित रूप है, जिसकी अपनी विशिष्ट अध्ययन-प्रणाली है।

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